एक तरफ जहां किसान आंदोलन चरम पर है, वही पहली बार भाजपा गांव की सरकार पर अपना परचम फहराने के लिए सीधा मैदान में उतरकर मोर्चा लेने जा रही है. किसान आंदोलन के बीच हो रहे इन पंचायत चुनावों को भाजपा विधानसभा चुनावों की रिहर्सल के रूप में देख रही है. भाजपा का मानना है कि अगर पंचायत चुनावों में उसकी फतह हुई तो न केवल देश में एक संदेश जाएगा बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में वह और मजबूत हो जाएगी, जो आगे चलकर विधानसभा चुनावों में उसकी मजबूती का आधार बनेगी.
भाजपा के लिए इस बार पंचायत चुनावों के क्या मायने हैं, इस बात का पता इसी बात से लगता है कि पार्टी के प्रदेश महामंत्री संगठन सुनील बंसल ने कानपुर के कैंट स्थित एक क्लब में पंचायत चुनावों को लेकर पार्टी पदाधिकारियों के साथ मंथन किया, तो उन्होंने स्पष्ट रूप से जता दिया कि किस तरह से यह पंचायत चुनाव भाजपा के लिए नाक का सवाल बना हुआ है. इस बैठक में सुनील बंसल ने कहा कि पार्टी पूरे दम से इन चुनावों को न केवल लड़ेगी बल्कि जिला पंचायत अध्यक्ष सदस्य और ब्लाॅक प्रमुख पद पर अपने अधिकृत प्रत्याशियों को भी उतारेगी. उन्होंने कहा कि आगामी विधानसभा चुनावों के लिए यह चुंनाव रिहर्सल होगा. उन्होंने हा कि प्रदेश में 58,758 पंचायतों के ग्राम प्रधानों का कार्यकाल समाप्त हो गया है. जल्द ही चुनावों का ऐलान हो सकता है. पंचायत चुनावों को देश की सबसे छोटी संसद बताते हुए कहा कि हर हालत में मतदाता तक पार्टी के संदेश को पहुंचाना है. यहां पर पार्टी के क्षेत्रीय अध्यक्ष मानवेंद्र सिंह, कानपुर बुंदेलखंड प्रभारी प्रियंका रावत, प्रदेश उपाध्यक्ष और पंचायत चुनाव प्रभारी दयाशंकर सिंह, विजय बहादुर पाठक ने भी संबोेधित किया. कानपुर बुंदेलखंड की ग्राम पंचायतों में लोकसभा और विधानसभा चुनावों की तरह ही सफल होने के लिए रणनीति पर यहां मंथन किया गया. यहां पर जिलाध्यक्ष सुनील बजाज, बीना आर्या पटेल, कृष्ण मुरारी शुक्ल, अविनाश सिंह, मोहित पांडेय, अनूप अवस्थी आदि रहे.